क्या कहु मुझे कितना रुलाती है
क्या कहु मुझे कितना रुलाती है , जब जब भी तुम्हारी यादआती है, वो दिन कितने हसीन थे, वही लम्हा …
क्या कहु मुझे कितना रुलाती है , जब जब भी तुम्हारी यादआती है, वो दिन कितने हसीन थे, वही लम्हा …
वो गये दिन गुजर जिसे हम याद करते है ,फिर भी पुरानी याद पर मरते है,पता है गुजरा हुया लम्हा …
काश वो भी आकर हम से कह दे मैं भी तन्हाँ हूँ, तेरे बिन, तेरी तरह, तेरी कसम, तेरे लिए …
सारी उम्र आँखों में एक सपना याद रहा सदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहा न जाने क्या बात …
मुझे पता है,मेरी खुददारी तुम्हें खो देगी,मैं भी क्या करूँ….मुझे मांगने की आदत नहीं।