पत्थर समझ कर पाँव से ठोकर लगा दी,
अफसोस तेरी आँख ने परखा नहीं मुझे,
क्या क्या उमीदें बांध कर आया था सामने,
उसने तो आँख भर के भी देखा नहीं मुझे।
दोस्तों हम जिसे जान से भी जादा प्यार करते है न वही हमारी कोई काद्रा नहीं करती है अफसोस ये रह जाता है जिसे हम हीरा समझ बैटते है वो चांदी तो दूर मिट्टी भी नहीं निकलता है हम पूरी जिंदगी की सपने देख लेते है उनसे उम्मीद बांध देते है लेकिन वो उम्मीद इस तरह से टूटता है की हमे संभालने का मौका नहीं मिलता ।।
जिसे हम दिल मे बसा कर रकखते है वो हमे देखना भी पसंद नहीं करते तब सोचो दिल मे कितना दर्द होता होगा हैं दोस्तों ।।