एक सपना सजाया था आपको पाने की,
आहट पढ़ लेता था आपके आने की।
मै मानता हूँ, मजबुरयां थी आपकी कुछ,
फिर भी क्या डर इतना इस जमाने की।
एक सपना सजाया था आपको पाने की,
आहट पढ़ लेता था आपके आने की।
मै मानता हूँ, मजबुरयां थी आपकी कुछ,
फिर भी क्या डर इतना इस जमाने की।