कुछ इस कदर बदरंग सी

कुछ इस कदर बदरंग सी ये ज़िन्दगी लगती है.
शायद इसमें तेरे नूर की कमी सी लगती है.
तनहा और वीरान ये सारा जहाँ लगता है.
बिन तेरे सुनी सुनी ये ज़मी लगती है.
कुछ धुंधला सा नज़र आता है ये सब कुछ मुझे.
शायद मेरी ही आँखों में कुछ नमी सी लगती है.

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