मजदूर हूं पर मजबूर नही कि;
अपने अरमानों को पूरा न कर सकूँ..|
ईंटों का बोझ थोड़ा ओर बड़ा दो साहब,
आज बच्चों ने खिलोने की ज़िद की हे|
किसी को इज़्ज़-ओ-नाज़,किसी को नाम चाहिए,
मैं मजदूर हूँ साहब मुझे पेट के लिए काम चाहिए।
मजबूर है हम अपनी परिस्थिति से,
नही तो स्थिति तो हमारी भी अच्छी थी।
किसी और का ख़रीदा है, मैंने तो सिर्फ़ बोझ है उठाया,
मैं एक मजदूर हूँ साहिब, मैंने भला इतना कब कमाया|
धूप में जल कर तुम्हे छाँव देता है,
ख़ुशी के बहुत से पल हमें मजदूर देता है।
नमस्कार दोस्तों शायरी पाडा में आपका हार्दिक स्वागत है ,दोस्तों मजदुर ,क्या समझे आज आमिर तबके के लोग मजदुर लोगो को हीन भवाना से देखते है लेकिन दोस्तों आप सभी को पता है देश की तरक्की में मजदुर लोगो का बहुत बड़ा हाथ है दोस्तों ,लेकिन दोस्तों आज सरकार हर लोगो के लिये नये नये योजनाये लेकर आती है ,मैं किसानो के दर्द को दरकिनार नहीं कर रहा लेकिन ,फिर भी सरकार किसानो के लिये बहुत कुछ करती है ,बोनस मिलता है समय समय पर उसका कर्जा माफ़ करती है ,लेकिन क्या कभी सरकार ने मजदूरो के लिये सोचा है क्या दोस्तों आप सभी बताओ दोस्तों प्लीज ..|
मजदुर आज भी अपने मान सम्मान के लिये दो वक्क्त के रोटी के लिये अपने परिवार के पेट के लिये आज भी दर बदर भटक रहा है लेकिन आज भी सरकार अपनी आँख मूंद कर बैठी है ,मरता है तो मरने दे ,ऐसा क्यों दोस्तों ,जैसे हर वर्ग के लिये खास कर कई योजनाये निकलती है ,क्या कभी अभी तक सिर्फ और सिर्फ गरीब मजदूरो भूमिहीन गरीबो के लिये कुछ योजनाये निकाली है अगर निकाली है तो क्या सीधा लाभ उन जरुरतमंदो को मिली है,नहीं न हं दोस्तों क्या कहते है की गरीब मजदुर लोग शराब पीते है इसलिये अपने परिवार को संभाल नहीं पाते ,ऐसा नहीं क्या आमिर तबके के लोग नहीं पीते ,पीते है लेकिन छुप के लेकिन गरीब पीता है खुले में ऐसा क्यों क्युकी परिवार की जुम्मेदारी में हालात की मज़बूरी में ,लेकिन दुनियां उसे क्या समझती है शराबी ऐसा नहीं है दोस्तों ,सबको अपने जुम्मेदारी का अश्सास है ,लेकिन अपने हालात से मजबूर हो कर शराबी बनता है ..नहीं क्या सरकार मजदूरो को इंसान नहीं समझती ,दोस्तों आज मजदुर हर वो कम कर सकता है जो आमिर इंसान कर सकता है सिर्फ उसके सामने एक चीज ही आड़े आती है भूख और ,परिवार की जरूरत जो पूरी जिन्दगी अपने परिवार को की जरूरत को पूरा करने में में निकल जाती है …..|