वो लाडली श्री राम की,,
मै महादेव का दीवाना।।
वो पली बडी है महलों में,,
मुझे कैलाश पे रहने है जाना।।
उसके पथ पर बिछते पुष्प सदा,,
मेरा वनो से है आना जाना।।
वो प्रेम घोलती शब्दों से,,
मुझे भाता उनका विष पी जाना।।
वो हठ करती विचलित होती,,
मैंने सीखा रौद्र रूप है दिखलाना।।
वो मर्यादित अपनी मर्यादा मेे,,
है प्रलय उनके त्रिनेत्र का खुल जाना।।
उसके माथे पर चंदन सजता,,
मुझे भाता भस्म का सज जाना।।
वो पूजती मेरे भोलेनाथ को,,🙏
मैंने भी श्री राम को है माना।।🙏
वो लाडली श्री राम की,,🙏
मै महाकाल का दीवाना।।🙏🙏