ए रब अगर तेरे कलम की स्याही खत्म हो गयी हो,
तो मेरा लहू लेले, यूँ कहानिया अधूरी न लिखा कर।
बेचैनियां बाजार में, नहीं मिला करती यारों,
बाँटने वाला, कोई बहुत नज़दीकी होता है।
अजीब सा दर्द है इन दिनों यारों,
न बताऊं तो ‘कायर’, बताऊँ तो ‘शायर’।
ये मेरी महोब्बत और उसकी नफरत का मामला है,
ऐ मेरे नसीब तू बीच में दखल-अंदाज़ी मत कर
ना जाने किस बात पे वो नाराज हैं हमसे,
ख्वाबों मे भी मिलता हूँ तो बात नही करती।
सोचता रहा ये रातभर करवट बदल बदल कर,
जानें वो क्यों बदल गया, मुझको इतना बदल कर।
उजड़ जाते हैं सर से पाँव तक वो लोग जो,
किसी बेपरवाह से बे-पनाह मोहब्बत करते हैं।
मुझसे खुशनसीब हैं मेरे लिखे ये लफ्ज,
जिनको कुछ देर तक पढ़ेगी निगाहे तेरी।
इश्क का धंधा ही बंद कर दिया साहेब,
मुनाफे में जेब जले, और घाटे में दिल।
सुनो कोई टूट रहा है तुम्हे एहसास दिलाते दिलाते,
सीख भी जाओ किसी की चाहत की कदर करना।