ना जाने दिल को कितना समझाता हूँ मैं,
बार-बार इसे यही बतलाता हूँ मैं,
तुम नहीं हो हाथों की लकीरों में मेरी,
फिर भी तुम्हारे आते ही “कमजोर” हो जाता हूँ मैं।
ना जाने दिल को कितना समझाता हूँ मैं,
बार-बार इसे यही बतलाता हूँ मैं,
तुम नहीं हो हाथों की लकीरों में मेरी,
फिर भी तुम्हारे आते ही “कमजोर” हो जाता हूँ मैं।