वो है जो हमसे नजरें फेर के बैठे है,
ना जाने क्यों वो ऐसे इतने देर से बैठे है,
काश देख पते मेरी बेताबी को,
की हम उनके दीदार को कितने शामों सेहर से बैठे है।
वो है जो हमसे नजरें फेर के बैठे है,
ना जाने क्यों वो ऐसे इतने देर से बैठे है,
काश देख पते मेरी बेताबी को,
की हम उनके दीदार को कितने शामों सेहर से बैठे है।